हमेशा यही क्यों होता है कि किसान ही धरने पर बैठते हैं? कहीं यूरिया के लिए तो कहीं गन्ने के भुगतान के लिए लाठी खाते हैं। अपनी ज़मीन से विस्थापित हो जाते हैं। अभी क्यों कहा जा रहा है कि किसानों का यह प्रदर्शन विकास के विरोध में है। जबकि हर नेता अपनी चुनावी सभाओं में यही कहते हैं कि किसान खुद भूखा रह कर देश का पेट भरते हैं।