कई बार इस सवाल के आगे खुद फंस सा जाता हूं कि आखिर वह क्या बात है कि कई बार लोगों की आवाज उठती तो है, लेकिन किसी को सुनाई नहीं देती. हम जिस माध्यम से आते हैं, जिसे मीडिया कहते हैं, उसका काम है कि कई तरह की आवाजों को उठाकर एक जगह पहुंचाना, जिसे हम सरकार कहते हैं. लेकिन आजकल काम है एक जगह से एक ही आवाज को उठाकर कई जगह पहुंचा देना. इस प्रक्रिया में हम यह महसूस कर रहे हैं कि तरह-तरह से प्रभावित तबका है जो बेबस और लाचार है, वह दम घुटा हुआ महसूस करता है. सिर्फ इस बात के लिए कि वह हमारी मांगें पूरी करो जैसा नारा लगाना चाहता है, मगर उसकी आवाज कहीं छपती नहीं है, कहीं फैलती नहीं है. बस खुद उसे ही सुनाई देती है.