क्या आपको भी लिखते, बोलते समय लगता है कि पता नहीं कौन क्या समझ ले और भीड़ के साथ आ जाए। हर धर्म के लोग कुछ ऐसा खाते हैं जो दूसरे को पसंद नहीं होता। लेखकों के बाद अब वैज्ञानिक और इतिहासकार भी बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में आ खड़े हुए हैं। तो क्या मुल्क में बढ़ रही है कट्टरता? क्या कहना चाहते हैं लेखक? क्या सरकार लेखकों की सुनेगी?