राजनीति बिना इतिहास के नहीं हो सकती है, लेकिन जब राजनेता इस भरोसे इतिहास का इस्तेमाल करने लगें कि नागरिकों के पास मोटी-मोटी किताबों को चेक करने का, पढ़ने का और समझने का वक्त कहां होगा तब इतिहास के उस इस्तेमाल को लेकर हमेशा सतर्क रहना चाहिए. जब से नागरिकता संशोधन कानून का विरोध तेज़ हुआ है, इसके समर्थन में गांधी जी का उदाहरण दिया जाने लगा है. गांधी जी का उदाहरण इस तरह से दिया जा रहा है जैसे सारा काम गांधी जी के बताए रास्ते पर ही चलकर करते हों. अब गांधी जी ने तो नहीं कहा था कि गोडसे को देशभक्त बताने वाले को टिकट देनी है और सांसद बनाना है. तो फिर नागरिकता कानून का बचाव गांधी जी के नाम पर क्यों किया जा रहा है? क्या गांधी जी ने बिल्कुल वैसा ही कहा था जैसे इस कानून के समर्थन में प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह गांधी जी को कोट कर रहे हैं? क्या गांधी जी को भी कोई अपने राजनीतिक इस्तेमाल के लिए ग़लत, या आधा अधूरा कोट कर सकता है?