न तो राम का नाम लेने पर रोक है न रामनवमी का जुलूस निकालने पर. इससे पहले कि कई ज़िले जल उठे, यहां रूक कर सवाल करना ज़रूरी है कि कहीं रामनवमी के नाम पर गांव कस्बों और छोटे शहरों में सांप्रदियकता का उन्माद फैलाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है. इन जूलूस में राम जी के नारे कम लगते हैं, राजनीतिक हो चुके नारे ज़्यादा लगने लगे हैं. नेताओं को लगता है कि इससे पहले कि लोग रोज़गार अस्पताल के सवाल पूछें, उनको राम के नाम पर रास्ता दिखा दो. हम सबने रामनवमी देखी है, मगर अभी ऐसा क्यों हो रहा है कि किशोर उम्र के लड़कों के हाथ में मोटी मोटी तलवारें हैं, उनकी ज़ुबान पर भक्ति के नाम पर सियासी नारे हैं.